Wednesday 13 March 2019

होलाष्टक का महत्व जानिए


होलिका पूजन करने हेतु होलिका दहन वाले स्थान को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है। फिर मोहल्ले के चौराहे पर होलिका पूजन के लिए डंडा स्थापित किया जाता है। उसमें उपले, लकड़ी एवं घास डालकर ढेर लगाया जाता है। होलिका दहन के लिए पेड़ों से टूट कर गिरी हुई लकड़‍ियां उपयोग में ली जाती है तथा हर दिन इस ढेर में कुछ-कुछ लकड़‍ियां डाली जाती हैं।

होलाष्टक के दिन होलिका दहन के लिए 2 डंडे स्थापित किए जाते हैं। जिनमें एक को होलिका तथा दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है।  
पौराणिक शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए डंडा स्थापित हो जाता है, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। इन दिनों शुभ कार्य करने पर अपशकुन होता है। 

इस वर्ष होलाष्टक 16 मार्च से शुरू होकर 23 मार्च तक रहेगा। इस आठ दिनों के दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं। इसके अंतर्गत होलिका दहन और धुलेंडी खेली जाएगी। 
होलाष्टक में दो शब्दों का योग है। होली और अष्टक यहां पर होलाष्टक का अर्थ है होली से पहले के आठ दिन। इन आठ दिनों में विवाह हो या ग्रह प्रवेश, कोई नया बिजनेस शुरु करना हो या फिर अन्य कोई भी ऐसा शुभ कार्य जिसे करने के लिये शुभ समय देखने की आवश्यकता आपको पड़ती है, नहीं किया जाता। इसके पिछे जो प्रचलित कारण हैं उनमें से मुख्य कारण यहां दिये जा रहे हैं –

(1)   प्रचलित मान्यता के अनुसार शिवजी ने अपनी तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर कामदेव को फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया था। कामदेव प्रेम के देवता माने जाते हैं, इनके भस्म होने के कारण संसार में शोक की लहर फैल गई थी।
            जब कामदेव की पत्नी रति द्वारा भगवान शिव से क्षमा याचना की गई तब शिवजी ने कामदेव को पुनर्जीवन प्रदान करने का आश्वासन दिया। इसके बाद लोगों ने खुशी मनाई। होलाष्टक का अंत धुलेंडी के साथ होने के पीछे एक कारण यह माना जाता है।

(2)   मान्यता है कि हरिण्यकशिपु ने अपने पुत्र भक्त प्रह्लाद को भगवद् भक्ति से हटाने और हरिण्यकशिपु को ही भगवान की तरह पूजने के लिये अनेक यातनाएं दी लेकिन जब किसी भी तरकीब से बात नहीं बनी तो होली से ठीक आठ दिन पहले उसने प्रह्लाद को मारने के प्रयास आरंभ कर दिये थे। लगातार आठ दिनों तक जब भगवान अपने भक्त की रक्षा करते रहे तो होलिका के अंत से यह सिलसिला थमा। इसलिये आज भी भक्त इन आठ दिनों को अशुभ मानते हैं। उनका यकीन है कि इन दिनों में शुभ कार्य करने से उनमें विघ्न बाधाएं आने की संभावनाएं अधिक रहती हैं।

(3)      वहीं होलाष्टक में शुभ कार्य न करने की ज्योतिषीय वजह भी बताई जाती है। एस्ट्रोलॉजर्स का कहना है कि इन दिनों में नेगेटिव एनर्जी काफी हैवी रहती है। होलाष्टक के अष्टमी तिथि से आरंभ होता है। अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक अलग-अलग ग्रहों की नेगेटिविटी काफी हाई रहती है। जिस कारण इन दिनों में शुभ कार्य न करने की सलाह दी जाती है। इनमें अष्टमी तिथि को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चुतर्दशी को मंगल तो पूर्णिमा को राहू की ऊर्जा काफी नकारात्मक रहती है। इसी कारण यह भी कहा जाता है कि इन दिनों में जातकों के निर्णय लेने की क्षमता काफी कमजोर होती है जिससे वे कई बार गलत निर्णय भी कर लेते हैं जिससे हानि होती है।


होलाष्टक - क्या न करें ?

होलाष्टक के दौरान विवाह का मुहूर्त नहीं होता इसलिये इन दिनों में विवाह जैसा मांगलिक कार्य संपन्न नहीं करना चाहिये।

नये घर में प्रवेश भी इन दिनों में नहीं करना चाहिये।

भूमि पूजन भी इन दिनों में न ही किया जाये तो बेहतर रहता है।

नवविवाहिताओं को इन दिनों में मायके में रहने की सलाह दी जाती है।

हिंदू धर्म में 16 प्रकार के संस्कार बताये जाते हैं इनमें से किसी भी संस्कार को संपन्न नहीं करना चाहिये। हालांकि दुर्भाग्यवश इन दिनों किसी की मौत होती है तो उसके अंत्येष्टि संस्कार के लिये भी शांति पूजन करवाया जाता है।

किसी भी प्रकार का हवन, यज्ञ कर्म भी इन दिनों में नहीं किये जाते।

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