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Wednesday 13 March 2019

होलिका दहन - टोने-टोटके से बचके रहें।

क्या करें क्या न करें


होलिका दहन वाले दिन टोने-टोटके के लिए सफेद खाद्य पदार्थों का उपयोग किया जाता है। इसलिए
*इस दिन सफेद खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना चाहिये। 
*उतार और टोटके का प्रयोग सिर पर जल्दी होता है, इसलिए सिर को टोपी आदि से ढके रहें।
*टोने-टोटके में व्यक्ति के कपड़ों का प्रयोग किया जाता है, इसलिए अपने कपड़ों का ध्यान रखें।
*होली पर पूरे दिन अपनी जेब में काले कपड़े में बांधकर काले तिल रखें। रात को जलती होली में उन्हें डाल दें। यदि पहले से ही कोई टोटका होगा तो वह भी खत्म हो जाएगा।

होली के दिन करें ये ख़ास उपाय


अगर परिवार में कोई लंबे समय से बीमार हो होली की रात में सफेद कपड़े में 11 गोमती चक्र, नागकेसर के 21 जोड़े तथा 11 धनकारक कौड़ियां बांधकर कपड़े पर हरसिंगार तथा चन्दन का इत्र लगाकर रोगी पर से सात बार उतारकर किसी शिव मन्दिर में अर्पित करें। व्यक्ति स्वस्थ होने लगेगा। यदि बीमारी गंभीर हो, तो यह शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से आरंभ कर लगातार 7 सोमवार तक किया जा सकता है।

आर्थिक समस्या समाधान


होली की रात में चंद्रोदय होने के बाद अपने घर की छत पर या खुली जगह जहां से चांद नजर आए पर खड़े हो जाएं। फिर चंद्रमा का स्मरण करते हुए चांदी की प्लेट में सूखे छुहारे तथा कुछ मखाने रखकर शुद्ध घी के दीपक के साथ धूप एवं अगरबत्ती अर्पित करें। अब दूध से अर्घ्य प्रदान करें। अर्घ्य के बाद कोई सफेद प्रसाद तथा केसर मिश्रित साबूदाने की खीर अर्पित करें। चंद्रमा से आर्थिक संकट दूर कर समृद्धि प्रदान करने का निवेदन करें। बाद में प्रसाद और मखानों को बच्चों में बांट दें।
फिर लगातार आने वाली प्रत्येक पूर्णिमा की रात चंद्रमा को दूध का अर्घ्य अवश्य दें। कुछ ही दिनों में आप महसूस करेंगे कि आर्थिक संकट दूर होकर समृद्धि निरंतर बढ़ रही है।;
  

दुर्घटना से बचाव के लिए 


अगर आप अक्सर दुर्घटनाग्रस्त होते रहते हैं तो होलिका दहन से पहले पांच काली गोप/गुंजा/धागा/डोरा लेकर होली की पांच परिक्रमा लगाकर अंत में होलिका की ओर पीठ करके पांचों गुंजाओं को सिर के ऊपर से पांच बार उतारकर सिर के ऊपर से होली में फेंक दें।
• होलिका दहन तथा उसके दर्शन से शनि-राहु-केतु के दोषों से शांति मिलती है।
• होली की भस्म का टीका लगाने से नजर दोष तथा प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है।
• घर में भस्म चांदी की डिब्बी में रखने से कई बाधाएं स्वत: ही दूर हो जाती हैं।
• कार्य में बाधाएं आने पर आटे का चौमुखा दीपक सरसों के तेल से भरकर कुछ दाने काले तिल के डालकर एक बताशा, सिन्दूर और एक तांबे का सिक्का डालें। होली की अग्नि से जलाकर घर पर से ये पीड़ित व्यक्ति पर से उतारकर सुनसान चौराहे पर रखकर बगैर पीछे मुड़े वापस आएं तथा हाथ-पैर धोकर घर में प्रवेश करें।
• जलती होली में तीन गोमती चक्र हाथ में लेकर अपने (अभीष्ट) कार्य को 21 बार मानसिक रूप से कहकर गोमती चक्र अग्नि में डाल दें तथा प्रणाम कर वापस आएं।

सुख, समृद्धि के लिए :


अहकूटा भयत्रस्तै:कृता त्वं होलि बालिशै:
अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम: ||
इस मंत्र का उच्चारण एक माला, तीन माला या फिर पांच माला विषम संख्या के रूप में करना चाहिए।
ऐसा माना जाता है कि होली की बची हुई अग्नि और भस्म को अगले दिन प्रात: घर में लाने से घर को अशुभ ‍शक्तियों से बचाने में सहयोग मिलता है तथा इस भस्म का शरीर पर लेपन भी किया जाता है।
भस्म का लेपन करते समय निम्न मंत्र का जाप करना कल्याणकारी रहता है-
वंदितासि सुरेन्द्रेण ब्रह्मणा शंकरेण च।
अतस्त्वं पाहि मां देवी! भूति भूतिप्रदा भव।।

होलाष्टक का महत्व जानिए


होलिका पूजन करने हेतु होलिका दहन वाले स्थान को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है। फिर मोहल्ले के चौराहे पर होलिका पूजन के लिए डंडा स्थापित किया जाता है। उसमें उपले, लकड़ी एवं घास डालकर ढेर लगाया जाता है। होलिका दहन के लिए पेड़ों से टूट कर गिरी हुई लकड़‍ियां उपयोग में ली जाती है तथा हर दिन इस ढेर में कुछ-कुछ लकड़‍ियां डाली जाती हैं।

होलाष्टक के दिन होलिका दहन के लिए 2 डंडे स्थापित किए जाते हैं। जिनमें एक को होलिका तथा दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है।  
पौराणिक शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए डंडा स्थापित हो जाता है, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। इन दिनों शुभ कार्य करने पर अपशकुन होता है। 

इस वर्ष होलाष्टक 16 मार्च से शुरू होकर 23 मार्च तक रहेगा। इस आठ दिनों के दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं। इसके अंतर्गत होलिका दहन और धुलेंडी खेली जाएगी। 
होलाष्टक में दो शब्दों का योग है। होली और अष्टक यहां पर होलाष्टक का अर्थ है होली से पहले के आठ दिन। इन आठ दिनों में विवाह हो या ग्रह प्रवेश, कोई नया बिजनेस शुरु करना हो या फिर अन्य कोई भी ऐसा शुभ कार्य जिसे करने के लिये शुभ समय देखने की आवश्यकता आपको पड़ती है, नहीं किया जाता। इसके पिछे जो प्रचलित कारण हैं उनमें से मुख्य कारण यहां दिये जा रहे हैं –

(1)   प्रचलित मान्यता के अनुसार शिवजी ने अपनी तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर कामदेव को फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया था। कामदेव प्रेम के देवता माने जाते हैं, इनके भस्म होने के कारण संसार में शोक की लहर फैल गई थी।
            जब कामदेव की पत्नी रति द्वारा भगवान शिव से क्षमा याचना की गई तब शिवजी ने कामदेव को पुनर्जीवन प्रदान करने का आश्वासन दिया। इसके बाद लोगों ने खुशी मनाई। होलाष्टक का अंत धुलेंडी के साथ होने के पीछे एक कारण यह माना जाता है।

(2)   मान्यता है कि हरिण्यकशिपु ने अपने पुत्र भक्त प्रह्लाद को भगवद् भक्ति से हटाने और हरिण्यकशिपु को ही भगवान की तरह पूजने के लिये अनेक यातनाएं दी लेकिन जब किसी भी तरकीब से बात नहीं बनी तो होली से ठीक आठ दिन पहले उसने प्रह्लाद को मारने के प्रयास आरंभ कर दिये थे। लगातार आठ दिनों तक जब भगवान अपने भक्त की रक्षा करते रहे तो होलिका के अंत से यह सिलसिला थमा। इसलिये आज भी भक्त इन आठ दिनों को अशुभ मानते हैं। उनका यकीन है कि इन दिनों में शुभ कार्य करने से उनमें विघ्न बाधाएं आने की संभावनाएं अधिक रहती हैं।

(3)      वहीं होलाष्टक में शुभ कार्य न करने की ज्योतिषीय वजह भी बताई जाती है। एस्ट्रोलॉजर्स का कहना है कि इन दिनों में नेगेटिव एनर्जी काफी हैवी रहती है। होलाष्टक के अष्टमी तिथि से आरंभ होता है। अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक अलग-अलग ग्रहों की नेगेटिविटी काफी हाई रहती है। जिस कारण इन दिनों में शुभ कार्य न करने की सलाह दी जाती है। इनमें अष्टमी तिथि को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चुतर्दशी को मंगल तो पूर्णिमा को राहू की ऊर्जा काफी नकारात्मक रहती है। इसी कारण यह भी कहा जाता है कि इन दिनों में जातकों के निर्णय लेने की क्षमता काफी कमजोर होती है जिससे वे कई बार गलत निर्णय भी कर लेते हैं जिससे हानि होती है।


होलाष्टक - क्या न करें ?

होलाष्टक के दौरान विवाह का मुहूर्त नहीं होता इसलिये इन दिनों में विवाह जैसा मांगलिक कार्य संपन्न नहीं करना चाहिये।

नये घर में प्रवेश भी इन दिनों में नहीं करना चाहिये।

भूमि पूजन भी इन दिनों में न ही किया जाये तो बेहतर रहता है।

नवविवाहिताओं को इन दिनों में मायके में रहने की सलाह दी जाती है।

हिंदू धर्म में 16 प्रकार के संस्कार बताये जाते हैं इनमें से किसी भी संस्कार को संपन्न नहीं करना चाहिये। हालांकि दुर्भाग्यवश इन दिनों किसी की मौत होती है तो उसके अंत्येष्टि संस्कार के लिये भी शांति पूजन करवाया जाता है।

किसी भी प्रकार का हवन, यज्ञ कर्म भी इन दिनों में नहीं किये जाते।

होली - पूजन विधि

गोबर के बड़बुले
इस वर्ष होलिका दहन 20 मार्च 2019 होगा। पूजन में ध्यान रखने योग्य बातें यह है कि वृक्ष काटकर लकड़ियां एकत्रित न करें, क्योंकि यह न तो विधान है और ना ही पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल है।
गोबर के बड़बुले( गोबर के विशेष खिलौने), उपले, घास-फूस इत्यादि होली के डंडे (जो अरंडी की लकड़ी का होता है) के आसपास इकट्ठे कर जमा दिया जाता है। होलिका दहन में स्थान का भी महत्व है। आजकल सड़क या चौराहे पर होलिका दहन किया जाता है, जो गलत है। होलिकाग्नि से सड़क का वह भाग जल जाता है तथा वहां गड्ढा पड़ जाता है जिससे वाहनों के दुर्घटना की आशंका बढ़ जाती है।

कब करें पूजन - प्रदोषकाल में होलिका दहन शास्त्रसम्मत है तभी पूजन
करना चाहिए। प्राय: महिलाएं पूजन कर ही भोजन ग्रहण करती हैं।

पूजन सामग्री- रोली, कच्चा सूत, पुष्प, हल्दी की गांठें, खड़ी मूंग, बताशे, मिष्ठान्न, नारियल, बड़बुले आदि।

विधि- यथाशक्ति संकल्प लेकर गोत्र-नामादि का उच्चारण कर पूजा करें।

सबसे पहले गणेश व गौरी इत्यादि का पूजन करें। 'ॐ होलिकायै नम:' से होली का पूजन कर'ॐ प्रहलादाय नम:' से प्रहलाद का पूजन करें। पश्चात 'ॐ नृसिंहाय नम:' से भगवान नृसिंह का पूजन करें, तत्पश्चात अपनी समस्त मनोकामनाएं कहें व गलतियों के लिए क्षमा मांगें। कच्चा सूत होलिका पर चारों तरफ लपेटकर 3 परिक्रमा कर लें।
अंत में लोटे का जल चढ़ाकर कहें- 'ॐ ब्रह्मार्पणमस्तु।'
होली की भस्म का बड़ा महत्व है। इसे चांदी की डिब्बी में भरकर घर में रखा जाता है। इसे लगाने से प्रेतबाधा, नजर लगने आदि के लिए उपयोग में लिया जाता है।
होली की रात्रि तांत्रिक सिद्धियां तथा मंत्रादि सिद्ध करने के लिए अत्यंत शुभ दिन माना जाता है। जो भी मंत्र इत्यादि सिद्ध करना हो, उसे यथा‍शक्ति संकल्प लेकर आवश्यक वस्तुएं एकत्रित कर, किसी विद्वान व्यक्ति के मार्गदर्शन के अनुसार कार्य करना चाहिए। कोई भी कार्य होलिका दहन के पश्चात रात्रि में ही किए जाएं।
यदि कोई उग्र प्रयोग हो तो एकांत आवश्यक है तथा अपने स्थान की रक्षा कर ही कार्य करें।
धार्मिक एवं सामाजिक एकता के इस पर्व होली के होलिका दहन के लिए हर चौराहे व गली-मोहल्ले में गूलरी, कंडों व लकड़ियों से बड़ी-बड़ी होली सजाई जाती हैं। वहीं बाजारों में भी होली की खूब रौनक दिखाई पड़ती है।

लकड़ी और कंडों की होली के साथ घास लगाकर होलिका खड़ी करके उसका पूजन करने से पहले हाथ में असद, फूल, सुपारी, पैसा लेकर पूजन कर जल के साथ होलिका के पास छोड़ दें और अक्षत, चंदन, रोली, हल्दी, गुलाल, फूल तथा गूलरी की माला पहनाएं। 


Holi - a festival of colors and Love

Holi

Holi is regarded as one of the popular and widely celebrated festivals of India and is celebrated in almost every part of the country. It is also sometimes referred to as a "feast of love," because on this day, people tend to associate with each other by forgetting all their anger and all sorts of bad feelings. The great Indian festival lasts one night and one day, beginning in the month of Purnima or full moon in the month of Phagun. The first evening of the festival is celebrated under the name of Holika Dahan and the next day is called Dhuleti or Rangotsav. It is known in various parts of the country under different names.

 Holi is a festival of colors, it's a really fun day. Vibration of colors is something that brings a lot of positivity to our life Holi is a famous Hindu festival which is celebrated with joy and enthusiasm in every part of India. The ritual begins by collecting wood and burning it at the place fixed on the evening of the first day of Holi and this process symbolizes good victory over evil. On the second day of Holi, people paint with their friends and family and they show love and respect to those close to them, with Abir and Gulal.


Legends associated with Holi:
The story of Prahlad and Holika

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होली का महत्व

इस तरह के एक रंगीन और समलैंगिक त्योहार के बावजूद, होली के विभिन्न पहलू हैं जो हमारे जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। हालांकि वे इतने स्पष्ट नहीं हो सकते हैं, लेकिन एक करीबी नज़र और थोड़ा सा विचार करने वाले तरीकों से होली के महत्व को प्रकट करेगा। सामाजिक-सांस्कृतिक, धार्मिक से लेकर जैविक तक, हर कारण है कि हमें दिल से त्योहार का आनंद लेना चाहिए और अपने समारोहों के कारणों को संजोना चाहिए।

इसलिए, जब होली का समय हो, तो कृपया अपने आप को वापस न लें और त्योहार से जुड़ी हर छोटी-बड़ी परंपरा में पूरे उत्साह के साथ भाग लेकर त्योहार का आनंद लें।

पौराणिक महत्व

होली हमें अपने धर्म और हमारी पौराणिक कथाओं के करीब ले जाती है क्योंकि यह अनिवार्य रूप से त्योहार से जुड़ी विभिन्न किंवदंतियों का उत्सव हैसबसे महत्वपूर्ण प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की कथा है। किंवदंती कहती है कि एक बार एक शैतान और शक्तिशाली राजा, हिरण्यकश्यप रहता था जो खुद को भगवान मानता था और चाहता था कि हर कोई उसकी पूजा करे।  उनके पुत्र, प्रह्लाद भगवान विष्णु की पूजा करने लगे। अपने बेटे से छुटकारा पाने के लिए, हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन, होलिका को अपनी गोद में प्रह्लाद के साथ धधकती आग में प्रवेश करने के लिए कहा, क्योंकि उसे अग्नि में प्रवेश करने का वरदान प्राप्त था। किंवदंती है कि प्रह्लाद भगवान के लिए अपनी चरम भक्ति के लिए बच गया था, जबकि होलिका ने उसकी भयावह इच्छा के लिए एक कीमत चुकाई थी। होलिका या 'होलिका दहन' को जलाने की परंपरा मुख्य रूप से इस कथा से मिलती है।

होली भी राधा और कृष्ण की कथा मनाती है जिसमें चरम आनंद का वर्णन है, कृष्ण ने राधा और अन्य गोपियों पर रंग लगाने में लिया। कृष्ण का यह प्रैंक बाद में, एक प्रवृत्ति और होली उत्सव का एक हिस्सा बन गया।

पौराणिक कथाओं में यह भी कहा गया है कि होली ओउर पूतना की मृत्यु का उत्सव है, जिसने शिशु, कृष्ण को जहरीला दूध पिलाकर मारने का प्रयास किया था।

होली की एक और किंवदंती जो दक्षिणी भारत में बेहद लोकप्रिय है, भगवान शिव और कामदेव की है। किंवदंती के अनुसार, दक्षिण में लोग जुनून के भगवान कामदेव के बलिदान का जश्न मनाते हैं जिन्होंने भगवान शिव को ध्यान से बचाने और दुनिया को बचाने के लिए अपने जीवन को जोखिम में डाला।

इसके अलावा, लोकप्रिय औघड़ ढुंढी की कथा है, जो रघु के राज्य में बच्चों को परेशान करते थे और अंत में होली के दिन बच्चों के प्रैंक द्वारा उनका पीछा किया जाता था। किंवदंती में अपना विश्वास दिखाते हुए, आज तक बच्चों ने होलिका दहन के समय शरारतें और गालियाँ दीं।

सांस्कृतिक महत्व

होली से जुड़े विभिन्न किंवदंतियों का जश्न सत्य की शक्ति के लोगों को आश्वस्त करता है क्योंकि इन सभी किंवदंतियों की नैतिकता बुराई पर अच्छाई की अंतिम जीत है। हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की किंवदंती भी इस तथ्य की ओर इशारा करती है कि भगवान के लिए अत्यधिक भक्ति भगवान के रूप में भुगतान करती है जो हमेशा अपने सच्चे भक्त को अपनी शरण में लेती है।

ये सभी किंवदंतियाँ लोगों को उनके जीवन में एक अच्छे आचरण का पालन करने में मदद करती हैं और सच्चा होने के गुण पर विश्वास करती हैं। आधुनिक समय के समाज में यह अत्यंत महत्वपूर्ण है जब बहुत से लोग छोटे लाभ के लिए बुरी प्रथाओं का सहारा लेते हैं और ईमानदार होते हैं। होली लोगों को सच्चा और ईमानदार होने के गुण पर विश्वास करने में मदद करती है और बुराईयों से लड़ने के लिए भी।

इसके अलावा, होली उस वर्ष के समय में मनाई जाती है जब खेत पूरी तरह से खिल जाते हैं और लोग अच्छी फसल की उम्मीद करते हैं। यह लोगों को ख़ुशी मनाने, मीरा बनाने और होली की भावना में खुद को डूबने का एक अच्छा कारण देता है।


सामाजिक महत्व

होली समाज को एक साथ लाने और हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को मजबूत करने में मदद करती है। यह त्योहार गैर-हिंदुओं द्वारा भी मनाया जाता है, क्योंकि हर कोई इस तरह के एक महान और खुशी के त्योहार का हिस्सा बनना पसंद करता है।
साथ ही, होली की परंपरा यह भी है कि दुश्मन भी होली पर दोस्त बनते हैं और किसी भी कठिनाई को महसूस करते हैं जो मौजूद हो सकती है। इसके अलावा, इस दिन लोग अमीरों और गरीबों के बीच अंतर नहीं करते हैं और हर कोई त्योहार को एक साथ बंधुआ और भाईचारे की भावना के साथ मनाता है।
शाम को लोग दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने जाते हैं और उपहारों, मिठाइयों और शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करते हैं। यह रिश्तों को पुनर्जीवित करने और लोगों के बीच भावनात्मक बंधन को मजबूत करने में मदद करता है।

जैविक महत्व

यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि होली का त्योहार हमारे जीवन और शरीर के लिए कई अन्य तरीकों से आनंद और आनन्द प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण है।

हमें अपने पूर्वजों को भी धन्यवाद देना चाहिए जिन्होंने इस तरह के वैज्ञानिक रूप से सटीक समय पर होली मनाने की प्रवृत्ति शुरू की। और, त्यौहार में इतना मज़ा शामिल करने के लिए भी।जैसा कि होली वर्ष के एक समय में आता है जब लोगों को नींद और आलसी महसूस करने की प्रवृत्ति होती है। यह शरीर के लिए स्वाभाविक है कि वह वातावरण में ठंड से गर्मी में बदलाव के कारण कुछ थकान का अनुभव करे। शरीर के इस मरोड़ का मुकाबला करने के लिए, लोग जोर से गाते हैं या जोर से बोलते हैं। उनकी चाल तेज होती है और उनका संगीत तेज होता है। यह सब मानव शरीर की प्रणाली को फिर से जीवंत करने में मदद करता है।

इसके अलावा, जब शरीर पर स्प्रे किया जाता है तो रंग उस पर बहुत प्रभाव डालते हैं। जीवविज्ञानी मानते हैं कि तरल डाई या अबीर शरीर में प्रवेश करती है और छिद्रों में प्रवेश करती है। यह शरीर में आयनों को मजबूत करने का प्रभाव रखता है और इसमें स्वास्थ्य और सुंदरता जोड़ता है।

हालांकि, होली मनाने का एक और वैज्ञानिक कारण है, लेकिन यह होलिका दहन की परंपरा से संबंधित है। सर्दी और वसंत की उत्परिवर्तन अवधि, वातावरण के साथ-साथ शरीर में बैक्टीरिया के विकास को प्रेरित करती है। जब होलिका जलाई जाती है, तो तापमान लगभग 145 डिग्री फ़ारेनहाइट तक बढ़ जाता है। परंपरा के बाद जब लोग अग्नि के चारों ओर परिक्रमा (चक्कर लगाना या इधर-उधर करना) करते हैं, तो आग से निकलने वाली गर्मी शरीर में मौजूद जीवाणुओं को नष्ट कर देती है।

दक्षिण में होली जिस तरह से मनाई जाती है, वह त्योहार अच्छे स्वास्थ्य को भी बढ़ावा देता है। इसके लिए, होलिका जलाने के अगले दिन लोग अपने माथे पर राख (विभूति) डालते हैं और वे चंदन (चंदन) को आम के पेड़ के युवा पत्तों और फूलों के साथ मिलाते हैं और अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए इसका सेवन करते हैं।

कुछ का यह भी मानना है कि रंगों से खेलने से अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलता है क्योंकि रंगों का हमारे शरीर और हमारे स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव पड़ता है। पश्चिमी-चिकित्सकों और डॉक्टरों का मानना है कि स्वस्थ शरीर के लिए, रंगों का अन्य महत्वपूर्ण तत्वों के अलावा एक महत्वपूर्ण स्थान भी है। हमारे शरीर में एक विशेष रंग की कमी के कारण बीमारी होती है, जिसे उस विशेष रंग के साथ शरीर को पूरक करने के बाद ही ठीक किया जा सकता है।

लोग होली पर अपने घरों की सफाई भी करते हैं जो घर में धूल और गंदगी को साफ करने में मदद करता है और मच्छरों और अन्य कीटों से छुटकारा दिलाता है। एक साफ घर आमतौर पर निवासियों को अच्छा लगता है और सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है।

ढुंढी की कथा

             ऐसा माना जाता है कि कभी पृथु (या रघु) के राज्य में ढुंढी नामक एक राक्षस  थी। मादा राक्षस छोटे बच्चों को विशेष रूप से परेशान करती थी जो तंग आ गए थे।
            ढुंढी, भगवान शिव से वरदान लेती थी कि उसे न तो देवताओं के हाथों मारा जाएगा, न ही लोग के हथियारों से पीड़ित होंगे और न ही गर्मी, सर्दी या बारिश से। इन वरदानों ने उसे लगभग अजेय बना दिया, लेकिन वह एक कमजोर बिंदु भी था। उसे भगवान शिव ने भी शाप दिया था कि वह पागल हो जाने वाले लड़कों से खतरे में है।

          ढुंढी राक्षस  से बुरी तरह परेशान, रघु के राजा ने अपने पुजारी से सलाह ली। पुजारी ने समाधान देते हुए कहा कि फाल्गुन 15 पर, ठंड का मौसम समाप्त हो जाता है और गर्मियों की शुरुआत होती है। हाथों में लकड़ी लेकर अपने घर से निकलें। उसे एक जगह पर रखें और घास-फूस रखकर जला दें। ऊंचे स्वर में तालियां बजाते हुए मंत्र पढ़ें, ज़ोर ज़ोर से हंसें, गाएं, चिल्लाएं और शोर करें तो राक्षसी मर जाएगी। जब ढुंढी राक्षसी इतने सारे बच्चों को देखकर वहां पहुंची तो बच्चों ने एक समूह बनाकर नगाड़े बजाते हुए ढुंढी को घेरा, धूल और कीचड़ फेंकते हुए उसको शोरगुल करते हुए नगर के बाहर खदेड़ दिया। इसी परंपरा का पालन करते हुए आज भी होली पर बच्चे शोरगुल और गाना बजाना करते हैं।

         किंवदंती है कि होली के दिन, गाँव के लड़के अपनी एकजुट शक्ति प्रदर्शित करते हैं और धूंधी का पीछा करते हुए चिल्लाहट, गालियाँ और मज़ाक उड़ाते हैं। यह इस कारण से है कि युवा लड़कों को होली के दिन असभ्य शब्दों का उपयोग करने की अनुमति है, बिना किसी अपराध के। बच्चे भी होलिका जलाने में बड़ा आनंद लेते हैं।

कामदेव की कथा

गहन ध्यान में  शिव
किंवदंती है कि जब भगवान शिव की पत्नी सती ने अपने पिता दक्ष द्वारा शिव को दिखाए गए अपमान के कारण खुद को अग्नि में डुबो दिया था, तो भगवान शिव अत्यंत दुखी हुए। उन्होंने अपने सांसारिक कर्तव्यों को त्याग दिया और गहन ध्यान में चले गए।
इस बीच, पहाड़ों की बेटी, पार्वती ने शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए ध्यान करना शुरू कर दिया। इसके अलावा, चूंकि शिव दुनिया के मामलों में कम से कम दिलचस्पी रखते थे, इसलिए दुनिया के मामलों में जटिलताएं पैदा होने लगीं, जिसने सभी देवताओं को चिंतित और भयभीत कर दिया।
काम-दहन

देवताओं ने तब भगवान कामदेव की मदद ली, प्रेम और जुनून के देवता शिव को उनके मूल स्व में वापस लाने के लिए। कामदेव को पता था कि ऐसा करने का परिणाम उन्हें भुगतना पड़ सकता है, लेकिन उन्होंने दुनिया के लिए शिव पर अपना तीर चलाना स्वीकार कर लिया।
जब नियोजित कामा ने शिव पर अपना प्रेम बाण चलाया, जब वे ध्यान में थे। इससे शिव अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोली - कामदेव को राख में बदलना। हालांकि, कामदेव तीर का वांछित प्रभाव था और भगवान शिव ने पार्वती से शादी की।
इसके थोड़ी देर बाद, कामदेव की पत्नी, रति ने भगवान शिव से विनती की और कहा कि यह सब देवताओं की योजना है और उन्होंने कामदेव को पुनर्जीवित करने के लिए कहा। स्वयं प्रेम का अवतार, भगवान शिव ने सहर्ष ऐसा करना स्वीकार कर लिया।
इस प्रकार इस घटना का सभी के लिए सुखद अंत हुआ।

ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ने होली के दिन कामदेव को जलाया था।

कामदेव
दक्षिण के लोग होली के दिन अपने चरम बलिदान के लिए कामदेव - भगवान की पूजा करते हैं।

कामदेव को गन्ने के अपने धनुष के साथ चित्रित किया गया है जिसमें गुनगुना मधुमक्खियों की एक पंक्ति है और उनके तीर-शाफ्ट दिल से छेदने वाले जुनून के साथ सबसे ऊपर हैं। देवता को आम के फूल चढ़ाए जाते हैं जो उन्हें प्रिय थे और चंदन का पेस्ट उनके घातक जलने के दर्द को शांत करता है। गीत भी ऐसे गीत हैं जिनमें रति की व्यथा को दर्शाया गया है।

तमिलनाडु में, होली को तीन अलग-अलग नामों से जाना जाता है - कामविलास, कामन पांडिगई और काम-दहानम


होलिका और प्रहलाद की कथा



होली त्यौहार मनाने के पिछे हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका की कथा अत्यधिक प्रचलित है ।
प्राचीन काल में अत्याचारी राक्षसराज हिरण्यकश्यप ने तपस्या करके भगवान ब्रह्माजीसे वरदान पा लिया कि, संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे न मार सके । न ही वह रात में मरे, न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर में, न बाहर । यहां तक कि कोई शस्त्र भी उसे न मार पाए ।
ऐसा वरदान पाकर वह अत्यंत निरंकुश बन बैठा । हिरण्यकश्यप के यहां प्रहलाद जैसा परमात्मा में अटूट विश्वास करने वाला भक्त पुत्र पैदा हुआ । प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उस पर भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि थी ।
हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को आदेश दिया कि, वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति न करे । प्रहलाद के न मानने पर हिरण्यकश्यपने उसे जान से मारने का निश्चय किया । उसने प्रहलाद को मारने के अनेक उपाय किए लेकिन प्रभु-कृपा से वह बचता रहा ।
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान था । हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की सहायता से प्रहलाद को आग में जलाकर मारने की योजना बनाई ।
होलिका बालक प्रहलाद को गोद में उठा जलाकर मारने के उद्देश्य से आग में जा बैठी । लेकिन परिणाम उलटाही हुआ । होलिका ही अग्निमे जलकर वहीं भस्म हो गई और भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद बच गया ।

तभी से होली का त्योहार मनाया जाने लगा ।
तत्पश्चात् हिरण्यकश्यप को मारने के लिए भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में खंभे से निकल कर गोधूली समय (सुबह और शाम के समय का संधिकाल) में दरवाजे की चौखट पर बैठकर अत्याचारी हिरण्यकश्यप को मार डाला ।